आकर फिर न जाना दिल रौशन किया हुआ है
जालिम है यह ज़माना और तुम हो बेखबर
रास्ता बड़ा कठिन है पहरा लगा हुआ है
दिल तेरा कोई दुखाये तो मुझको याद करना
छुपाने को दिल में एक कोना बचा हुआ है
तेरी नासमझी ने ही मुझको बड़ा रुलाया
आंसू से मेरा दामन अबभी भरा हुआ है
तेरे खोने का गम तो है ही पर कभी
कोई जालिम न सताए डर इसका बना हुआ है
रियाज भाई, इस शानदार गजल के लिए बधाई स्वीकारें।
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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
जाकिर भाई अस्लाम्वालैकुम ....हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत सुक्रिया .......
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